Pages

Saturday, May 5, 2012

काजा डायरी 3 - आखिर ऊंचाई में क्या रखा है

किब्बर जाने की इच्छा हमेशा एक भावनात्मक लगाव से जुड़ी रही है। आखिर हम उसे सबसे ऊंचे गांव के रूप में हमेशा से सुनते-पढ़ते आ रहे हैं। देखने को मन करता था कि आखिर एवरेस्ट (8848 मीटर) की लगभग आधी ऊंचाई पर बसा गांव कैसा होगा! इतनी मुश्किल स्थिति में लोग कैसे गुजर करते होंगे! यहां आकर पता चलता है कि स्पीति में चार हजार मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर बसे गांव कई होंगे। किब्बर (4250 मीटर) को उनमें से कैसे सबसे ऊंचा आंका गया था, यह कौतूहल का विषय है। यह कौतूहल इसलिए और भी है कि अब कुछ और गांव सबसे ऊंचे गांव की दावेदारी में आ गए हैं। इनमें लांगजा और हिक्किम के भी नाम हैं। किब्बर गांव के लिए काजा से कीह गोंपा वाला ही रास्ता जाता है, जबकि लांगजा व हिक्किम कौमिक गोंपा के रास्ते में हैं। किब्बर को सालों पहले सबसे ऊंचा गांव आंकने के पीछे हो सकता है यह वजह भी रही हो कि उस गांव का नीचे के सरकारी अमले से सबसे पहले संपर्क कायम हो गया हो। जैसे-जैसे ऊंचाई वाले इलाकों के लिए संपर्क मार्ग बने हों, नए-नए गांव नक्शे पर आ गए हों। आखिर गांवों की ऊंचाई में तो कोई फर्क न आया होगा, और न ही उन गांवों के लोग अबतक एकांतवास में रहते होंगे। नीचे की दुनिया और आसपास के गांवों से तो उन गांवों के बाशिंदों का संपर्क हमेशा रहा ही होगा।


वन विभाग की स्पीति रेंज में डिप्टी रेंजर और किब्बर के निवासी दोरजे नामग्याल अपने गांव के तमगे पर उठे संशय से दुखी थे। उनका कहना था कि यूं भी टूरिस्टों की आवक कोई बहुत अच्छी न थी, अब नीचे काजा में टूरिस्टों को यह कह दिया जाता है कि सबसे ऊंचा गांव तो किब्बर नहीं, बल्कि लांगजा है। ऊंचाई थोड़ी-बहुत कम-ज्यादा होने से क्या होता है! वैसे यह कम रोचक नहीं कि इतनी ऊंचाई पर बसा यह गांव हमारे मैदानी इलाकों के कई देहातों से ज्यादा खुशहाल है। महज 75 घर और 450 की आबादी वाले इस गांव में सीनियर सेकेंडरी स्कूल है, आधे घरों में सैटेलाइट टीवी के कनेक्शन हैं , अच्छी खेती है और मवेशी हैं। यकीनन इसमें इनकी मेहनत का भी योगदान है जो उन बंजर पहाड़ों में ग्लेशियरों के पानी का इस्तेमाल करके भरपूर जौ तक उपजा लेते हैं।

ऊंचाई के तमगे की ज्यादा परवाह लांगजा को भी नहीं है। वहां के निवासी व सरकारी कर्मचारी तानजिंग कहते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है। किब्बर की तुलना में लांगजा गांव छोटा है, वहां महज 33 घर हैं। वैसे मजेदार बात यह है कि जहां लांगजा गांव पर लगे लोक निर्माण विभाग के बोर्ड पर उसकी ऊंचाई 4200 मीटर लिखी हुई है, वहीं ठीक उसी के बगल में लगे एक स्थानीय संरक्षण संगठन के बोर्ड पर उसकी ऊंचाई 4400 मीटर लिखी हुई है। लांगजा से और आठ किलोमीटर आगे, कौमिक गोंपा के पास स्थित हिक्किम की ऊंचाई भी कमोबेश लांगजा या किब्बर के ही बराबर है। हिक्किम की ख्याति पहले ही सबसे ऊंचे डाकघर के लिए है। वहीं लांगजा में हजार साल पुराना लांग (बौद्ध) मंदिर है। लांगजा के लांग को स्पीति घाटी के सभी देवताओं का केंद्र माना जाता है।

जो भी ऊंचाई हो और कोई भी गांव अव्वल हो, इतना तो तय है कि भौगोलिक संरचना और समाज-संस्कृति के लिहाज से सभी गांव खास अहमियत वाले हैं। उन सभी को देखना एक अलग अनुभूति देता है। यकीनन सभी गांव सैकड़ों साल पहले बसे होंगे। इसके पीछे हो सकता है किन्हीं खास संस्कृति को बचाए रखने की कोशिश भी एक वजह हो।

0 comments: