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Monday, October 10, 2011

मेहरानगढ़ में संगीत विलास

उत्तर भारत में यह साल का सबसे चमकदार पूनम का चांद होता है। शरद पूर्णिमा के चांद की धवल रोशनी में नहाया मेहरानगढ़ किला और मजबूत अïट्टालिकाओं के साये में कानों में रस घोलती रईस खान के मोरचंग की तान। यह एक ऐसा अनुभव है जिसकी कल्पना मात्र आनंदित कर देती है। इस आनंद को भोगना तो खैर अलग विलासिता है ही। एक सैलानी को इससे ज्यादा और क्या चाहिए।


ऐसा अक्सर नहीं होता कि भारत के किसी संगीत महोत्सव को दुनिया के शीर्ष 25 अंतरराष्ट्रीय संगीत समारोहों में गिना जाए। लेकिन जोधपुर में होने वाले राजस्थान अंतरराष्ट्रीय लोक महोत्सव (आरआईएफएफ) ने महज पांच साल में यह उपलब्धि हासिल कर ली है। यह अब केवल लोक संगीत ही नहीं बल्कि संस्कृतियों के मिलन का शानदार मंच बन गया है। 2007 में शुरू हुआ यह समारोह हर साल अक्टूबर में पांच दिन के लिए संगीत की लहरियां बिखेरता है। देश-दुनिया के ढाई सौ से ज्यादा संगीतकार व कलाकार यहां अपने संगीत की विरासत का जश्न मनाते हैं और नए मिलन-बिंदु गढ़ते हैं। इस साल यह संगीत समारोह 12 से 16 अक्टूबर को होने वाला है।

जोधपुर के मेहरानगढ़ किले को टाइम्स पत्रिका एशिया के सर्वश्रेष्ठ किले के खिताब से नवाज चुकी है। यह भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है और उन चुनिंदा किलों में से एक, जिनकी शान काफी हद तक बरकरार है। नीले शहर जोधपुर के आसमान में चार सौ फुट की ऊंचाई पर बना पांच सौ साल पुराना किला एक पताका सा दिखाई देता है। उसकी पृष्ठभूमि में होने वाला यह संगीत समारोह सीमाओं को तोड़ते हुए लोक संगीत, जॉज, सूफी व पारंपरिक संगीत का शानदार समन्वय पेश करता है। यह इस अर्थ में भी एक संपूर्ण संगीत आयोजन हैं क्योंकि इसमें जहां शामें संगीत की धुनों में डूबी रहती हैं, वहीं दिन में यहां संगीत पर संवाद होता है। आम लोग, परिवार, संगीत प्रेमी, संगीत के छात्र आते हैं और नई जानकारियां हासिल करते हैं और सीधे सिद्धहस्त संगीतकारों से कुछ गुर सीखते हैं।

अलग-अलग विधाओं के लिए अलग-अलग मंच सजते हैं। लीविंग लीजेंड्स स्टेज पर राजस्थान के स्थानीय समुदायों के प्रमुख संगीतकार सुर बिखेरते हैं तो मुख्य स्टेज की हर शाम एक नई सनसनी पैदा करती है। क्लब मेहरान में नृत्य की थिरकन के बीच ढलती रात का अहसास खत्म हो जाता है तो सूर्योदय व सूर्यास्त के समय का संगीत आध्यात्मिकता बिखेरता है। इस साल पहली बार राजस्थान के कई इलाकों के संगीत व वाद्य, जैसे कि भील नृत्य, स्वांग व तेजाजी नृत्य, थालिसर व पावड़ी, जोगिया सारंगी, सुरमंडल, जसनाथजी के भोपे व ढोल थाली नृत्य पहली बार इस समारोह में नजर आएंगे।