Pages

Friday, April 2, 2010

गॉल : खूबसूरती का अनंत विस्तार

मोती सरीखे श्रीलंका के दक्षिणी सिरे पर स्थित गॉल को कई लोग गोवा और मालदीव की खूबसूरती का मिला-जुला रूप मानते हैं। नीला समुद्र यहां मानो अंनत तक फैला है


कैंडी से गॉल का रास्ता गोवा की याद दिलाता है, मानो आप मडगाव से पणजी जा रहे हों। ओल्ड गोवा जैसे ही खुले-खुले, फूलों से लकदक घर। बनावट भी वैसी ही। नारियल व रबर के विशाल बगीचे। आगे चलें तो एक तरफ हरियाली और दूसरी तरफ पछाड़ मारता समुद्र। लोग भी अपने देश जैसे ही लगते हैं- वैसा ही रंग-रूप, उसी तरह खुशमिजाज और मिलनसार। हमारी तरह ही गांवों में लगते हाट। आगे जाकर कैंडी से गॉल का रास्ता कोलंबो-गॉल हाइवे में मिल जाता है जो पूरा हिंद महासागर के किनारे-किनारेहै। कैंडी श्रीलंका का दिल है, खूबसूरती और भूगोल दोनों में। वहीं गॉल श्रीलंका चरम है- खूबसूरती और भूगोल दोनों में। गॉल श्रीलंका के सबसे निचले सिरे पर स्थित है, थोड़ा पश्चिम की तरफ।

हम हिंदुस्तानी गॉल को उसके क्रिकेट स्टेडियम के लिए बहुत जानते हैं। स्टेडियम है भी बहुत शानदार- एक तरफ गॉल शहर, पैवेलियन के ठीक सामने गॉल फोर्ट और बाईं तरफ समुद्र। गॉल का स्टेडियम 2004 में आई सुनामी विभीषिका और उसके बाद मानवीय इच्छाशक्ति की जीत का सबसे बेहतरीन नमूनों में से एक है। इसलिए यह बिलकुल दुरुस्त ही था कि गॉल पहुंचकर हमें पहली झलक वहां के क्रिकेट स्टेडियम की मिले, जो दो दिन बाद शुरू हो रहे टेस्ट मैच के लिए खुद को तैयार कर रहा था। गॉल फोर्ट के क्लॉक टॉवर के नीचे खड़े होकर सामने स्टेडियम को देखना बहुत विस्मयकारी था। पुर्तगालियों और डच के आधिपत्य में तीन तरफ से समुद्र से घिरे गॉल फोर्ट को बसाया गया था। फोर्ट के भीतर आज भी ज्यादातर इमारतें सैकड़ों साल पुराने इतिहास की झलक दिखाती हैं। वहां घूमते हुए लगता है, मानो किसी पुराने यूरोपीय शहर में घूम रहे हों। ऊंचे दरवाजे, बड़ी-बड़ी खिड़कियां, खुले दालान, खालिस यूरोपीय शैली की बनावट- हर चीज में, चाहे वह चर्च हो या मसजिद या होटल या कचहरी। क्लॉक टॉवर से किले की दीवार पर चलते-चलते, पुरानी जेल के ऊपर से एक तरफ पुराने शहर और दूसरी तरफ समुद्र को निहारते-निहारते लाइट हाउस तक जाने में अलग ही रूमानियत है। किले की दीवार के ठीक साथ समुद्र गहरा है, यहां किला बनाने की यही वजह रही होगी। हालांकि कुछ स्थानों पर नीचे उतरने की सीढि़यां भी हैं। बीच-बीच में बुर्ज पर कई स्थानीय लड़के सैलानियों से सिक्के नीचे समुद्र में फेंकने का अनुरोध करते नजर आते हैं। सिक्के के पीछे-पीछे वे भी समुद्र में छलांग लगा देते हैं और पानी से निकाल कर लाया गया सिक्का उनका इनाम हो जाता है।

गॉल के डच फोर्ट के भीतर पुराने शहर में घूमते हुए आप लिन बान स्ट्रीट पर जाएं तो वहां एक आर्ट गैलरी है। जिस इमारत में यह गैलरी है वह 1763 की बनी हुई है और उसे फोर्ट सिटी की सबसे पुरानी इमारतों में से एक माना जाता है। इमारत खंडहर में तब्दील हो चुकी थी लेकिन इसके मौजूदा मालिक अल-हज एम.एच.ए. गफ्फार ने इसे इसकी पुरानी रौनक लौटा दी- वही पुराना शिल्प, रंग, मिट्टी और मूंगे का मिश्रण। उसी तरह का लकड़ी का काम। यहां तक कि बीच दालान में उस जमाने का एक कुआं भी उसी तरह से फिर से खुदाई करके चूनामिट्टी व मूंगे से बना दिया गया है। लेकिन इस इमारत की सबसे खास बात इसका संग्रहालय है जिसमें पुर्तगालियों, अंग्रेजों और डच लोगों के समय की कई दुर्लभ व एंटीक वस्तुएं संग्रहीत की गई हैं। इनमें जेवरात, बर्तन, सिक्के, हथियार, कैमरे, झाड़-फानूस और न जाने क्या-क्या शामिल है। ये सारी चीजें अलग-अलग जगहों से जुटाई गई हैं और इनमें से कुछ तो गहरे सागर में खोजकर निकाले गए किसी जमाने के डूबे जहाजों से निकले सामान भी हैं। कई चीजें वाकई हैरान कर देने वाली है और सबसे हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि यह सारी कवायद उसी एक व्यक्ति ने की है। कई कमरों में चारों तरफ लगी बड़ी अल्मारियों में सहेज कर रखी ये सारी बेशकीमती चीजें उसकी अपनी संपत्ति है। चीजें इतनी पुरानी और दुर्लभ हैं कि उनकी कीमत तक आंकना मुमकिन नहीं।

मुख्य शहर बहुत छोटा है। शहर के दोनों तरफ यानी कोलंबो से आते हुए और आगे मटारा या डोंड्रा जाते हुए गॉल की सबसे शानदार होटले हैं। गॉल से आगे निकल जाएं तो बगल में टैम्प्रोबेन आईलैंड छोड़ते और मिरिसा होते हुए मातेरा पहुंचा जा सकता है। वहां का स्टार फोर्ट बहुत छोटा सा लेकिन डच शिल्प का बढि़या नमूना है। फोर्ट सितारे के आकार में बना है। फोर्ट के चारों और पानी भरा है और जाने का सिर्फ एक पुल है जिसे फोर्ट से ही समेटा भी जा सकता है। यह किला कम और सरकारी नुमाइंदों का निवास ज्यादा रहा होगा या फिर हद से हद कोई चौकी। अभी तो उसकी पहरेदारी अकेला एक छोटा सा मगरमच्छ कर रहा था जो पानी में एक चट्टान पर हमें सुस्ताता मिला। मातेरा से और आगे निकल जाएं तो डोंड्रा हेड पहुंच जाएंगे जो श्रीलंका का दक्षिणी छोर है। यहां बना हुआ लाइटहाउस श्रीलंका के सबसे बड़े लाइटहाउसों में से एक है। उसी के साथ बने लैगून को देखते हुए थाईलैंड के लैगून याद आ जाते हैं। चट्टानों की श्रृंखला समुद्र की लहरों को तोड़ देती है और लैगून का पानी शांत बना रहता है। उन चट्टानों से टकराकर गुस्सैल लहरें कई मीटर तक ऊपर उठ जाती हैं। कई मर्तबा यह पानी बेहद शानदार दृश्य रचता है। श्रीलंका के इस दक्षिणी-पश्चिमी सिरे पर मौजूद सारे तट सैलानियों के बीच खासे लोकप्रिय हैं और सालभर कई गतिविधियों का केंद्र बने रहते हैं। डोंड्रा हेड के निकट ही बुद्ध की एक बड़ी प्रतिमा भी है जो श्रीलंका की सबसे ऊंची बुद्ध प्रतिमाओं में से एक मानी जाती है। गॉल में रहें और रोज अगल-बगल कहीं मौज-मस्ती के लिए निकल जाएं। यहां से याला के जंगली जानवरों से मुलाकात करने भी जाया जा सकता है। गॉल से ही डोंड्रा जाएं तो समुद्र में व्हेल व डॉल्फिनों के नजारे देखे जा सकते हैं (देखें इनसेट)।

इसके अलावा चाहें तो बुंदाला में बर्ड वाचिंग की जा सकती है, हियारे व कान्नेलिया के जंगलों में सैर के लिए जा सकते हैं, कोट्टावा व रूमास्साला में नेचर वाक हो सकती है, कोग्गला या गिनगंगा तक नावों पर सैर की जा सकती है, या और भी कई तरह के अनुभव लिए जा सकते हैं। अलग-अलग बीचों, जैसे कि हाइकादुवा या बेंटोटा पर वाटर स्पो‌र्ट्स का भी मजा लिया जा सकता है। हाइकादुवा के पास समुद्र में बेहद शानदार मूंगा चट्टानें हैं जिन्हें पानी के नीचे गोता लगाकर देखने के लिए भी कई सैलानी आते हैं।

बेमिसाल नजारे

होटल के कमरे की बालकनी में आकर बैठे तो सामने सागर हिलोरे मारता दिखाई देता है, इतना नजदीक मानो छू लें। लहरों से उछलते पानी की नमी आप महसूस कर सकते हैं। समुद्र की जो खूबसूरती यहां देखने को मिलती है, उसी की वजह से इसे मालदीव की टक्कर का माना जाता है। कोलंबो से गॉल हाइवे पर जितनी भी होटलें हैं, सब समुद्र की ओर हैं। ताज समुद्र से लेकर लाइटहाउस व फोट्र्रेस तक श्रीलंका की कई सबसे शानदार होटलें हिंद महासागर के किनारे हैं। यानी इन सारी होटलों का एक सिरा लगातार लहरों से खेलता रहता है। जाहिर है कि इनके स्वीमिंग पूल भी सागर के पानी से छूते से हैं। यानी आप पूल में हों तो आपको एक नजर में पता नहीं चलेगा कि कहां पूल खत्म हो रहा है और कहां सागर शुरू हो रहा है। यही एंडलेस स्वीमिंग पूल की कल्पना है।


लेकिन श्रीलंका के इस हिस्से की एक और खास बात है, जो दुनिया में कहीं और दिखाई नहीं देती, और वो है गॉल के स्टिल्ट फिशरमैन यानी वे मछुआरे जो समुद्र में खड़े बांस पर बैठकर मछली पकड़ते हैं। रेत या मूंगा चट्टानों में गाड़ा गया लंबा सा बांस, उस पर बीच में जुड़ा एक लकड़ी का फट्टा (इसे यहां पेट्टा कहा जाता है) बैठने के लिए और साथ ही में एक हुक पर टंकी टोकरी, मछली डालने के लिए। बगल में एक झोला, अपने जरूरत के सामान के लिए। ये मछुआरे सूर्योदय व फिर सूर्यास्त के समय घंटों इस बांस पर बैठे रहते हैं, कि कोई बड़ी मछली आकर कांटे में फंस जाए। इस इलाके के मछुआरा समुदाय की यह पुरानी परंपरा रही है। हालांकि यह कब व कैसे शुरू हुई, यह कोई ठीक-ठीक नहीं जानता। कुछ लोग बताते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद कुछ मछुआरों ने इस तरीके का सबसे पहली बार इस्तेमाल किया जो बाद में परंपरा का हिस्सा बन गया। पांच साल पहले आई सुनामी के बाद इनकी संख्या कम होने लगी थी, लेकिन परंपरा को जिंदा रखने की कोशिश में फिर से ये लोग नजर आने लग गए हैं। बावले समुद्र में इस असहज से बांस पर बैठकर हाथ में कांटा थामे मछली पकड़ने की कवायद बड़ा हैरान करने वाली लगती है। भोर होने पर होटल के पीछे समुद्र के किनारे-किनारे टहलने निकला तो इन मछुआरों की पहली झलक हैरान करने वाली थी। जिस सहजता से वह अपने झोले से बीड़ी निकालकर पी रहा था, वो देखकर एकबारगी यकीन नहीं होता था क्योंकि वे लोग तट से थोड़ी दूर पानी में थे। ये मछुआरे इस तरह कितनी मछली पकड़ते होंगे और उससे कितना पेट अपना और घर वालों का भरते होंगे, अनुमान लगाना बहुत मुश्किल नहीं था। लेकिन इतने कष्ट उठाकर भी एक परंपरा को ये लोग जिंदा रखे हैं। गॉल व आसपास के इलाके, खास तौर पर कठालुवा और अहंगामा कस्बों में ऐसे मछुआरों के पांच सौ परिवार बताए जाते हैं। यह महज पारिवारिक व्यवसाय है जो एक पीढ़ी से दूसरी को मिलता रहता है। लेकिन अब यह सैलानियों के लिए भी बड़ा आकर्षण है।

विशालकाय व्हेल का रोमांच

श्रीलंका को बेलीन व्हेल देखने के लिए सबसे उम्दा जगहों में से एक माना गया है। पिछले कई साल गृहयुद्ध की भेंट चढ़ने से सैलानी इस मौके से वंचित रहे हैं, लेकिन अब माहौल शांत है। हर साल नवंबर से अप्रैल का समय व्हेल देखने के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। श्रीलंका का पूर्वी तट इसके लिए सबसे उपयुक्त है। इन महीनों में व्हेल दक्षिणी सिरे से बंगाल की खाड़ी की ओर जाती हैं। सबसे ज्यादा गतिविधि दिसंबर व जनवरी के महीनों में होती है। इन दिनों समुद्र भी अपेक्षाकृत शांत होता है, इसलिए व्हेल तट के नजदीक ही दिख जाती हैं। वहीं अप्रैल में ये व्हेल मछलियां पश्चिम में मालदीव की ओर चली जाती हैं। इस किस्म की व्हेलों का घनत्व श्रीलंकाई समुद्र में दुनिया में सबसे ज्यादा में से एक है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा स्तनपायी ब्लू व्हेल है, जो 30 मीटर तक लंबी और सौ टन वजन तक पहुंच जाती है। फिर फिन व्हेल, हंपबैक व्हेल, मिंक व्हेल वगैरह भी हैं। व्हेल के अलावा स्पिनर डॉलफिनों की संख्या भी यहां खासी है। याला के दक्षिण-पूर्वी तट पर मन्नार की खाड़ी से लेकर त्रिंकोमाली तक इन्हें देखा जा सकता है। व्हेलों की समझदारी, उनकी आवाजों, उनके भोजन, व्यवहार आदि को लेकर कई शोध दुनियाभर में होते आए हैं और उनसे अलग-अलग किस्म की व्हेलों के बारे में कई रोचक जानकारी मिलती है। उनको अपनी आंखों से देखना एक दुर्लभ अनुभव है। श्रीलंका के जाने-माने वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर गेहान डीसिल्वा विजेरत्ने कहते हैं कि श्रीलंका में मिरिसा व डोंड्रा हेड के बीच ब्लू व स्पर्म व्हेल देखना याला में तेंदुआ देखने से ज्यादा आसान है। डोंड्रा हेड श्रीलंका का सबसे दक्षिणी सिरा है और गॉल से वहां जाएं तो बीच में मिरिसा पड़ता है। यानी अगर आप गॉल को बेस बनाएं तो व्हेल घूमने का कार्यक्रम बना सकते हैं।