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Tuesday, June 28, 2011

एक चॉकलेटी दुनिया

बेल्जियम भले ही छोटा देश है, फिर भी चार दिन उसे घूमने के लिए नाकाफी हैं। हां, रास्ते बेशक नापे जा सकते है जैसे हमने चार दिन में चार शहरों के नाप डाले- ब्रुज से लेकर गेंट, एंटवर्प और फिर ब्रुसेल्स के। लेकिन चॉकलेट के स्वाद और खुशबू में डूबना हो तो यह काम वाकई चार दिन में बेल्जियम में किया जा सकता है

यह दावा तो मैं नहीं करूंगा कि दुनिया के सारे लोग चॉकलेट पसंद करते हैं। लेकिन थोड़े यकीन के साथ यह जरूर कहूंगा कि अगर दुनिया में चॉकलेट खाने वालों और न खाने वालों का हिसाब लगाया जाए तो निश्चित तौर पर चॉकलेट खाने वाले ज्यादा निकलेंगे। लिहाजा अगर आप चॉकलेट खाने के दीवाने हैं तो बेल्जियम आपके लिए स्वर्ग सरीखा है। बाजार में घूमते रहिए... हर ओर से चॉकलेट व कोको की महक आपकी सांसों में अलौकिक सुख भरती रहेगी। गाहे-बेगाहे आप किसी चॉकलेट शॉप के भीतर घुस जाएं तो वहां आपको मुफ्त में चॉकलेट चखने को भी मिल जाएगी। जाहिर है, चखाने के पीछे मकसद तो आपको खरीदने के लिए उकसाना ही होगा, लेकिन आप न खरीदकर और ऐसी कई सारी दुकानों की सैर करके भांति-भांति की चॉकलेट चखते असीम आनंद पा सकते हैं।


हम लोग आदतन मानते रहते हैं कि बात बढिय़ा चॉकलेट की हो तो स्विस (स्विट्जरलैंड की) चॉकलेट से बढिय़ा कुछ भी नहीं। लेकिन जानकारों का कहना है कि बात चॉकलेट की हो तो बेल्जियम से आगे कोई नहीं। कहा यही जाता है कि खुद स्विट्जरलैंड वालों ने चॉकलेट बनाने की मूल पाककला फ्रांस व बेल्जियम के चॉकलेट निर्माताओं (चॉकलेटियर्स) से ही हासिल की। जाहिर है, खुद बेल्जियम के लोग तो यह कहेंगे ही और बड़े अभिमान के साथ कहेंगे। यह जायज भी है। खास तौर पर वे चॉकलेट जो बाहर से सख्त लेकिन भीतर से पिघलती चॉकलेट से भरी होती हैं, वे तो बेल्जियम की ही देन हैं।

खैर हम बात कर रहे थे, चार दिन में बेल्जियम की सैर की। तो चार दिन में बेल्जियम को पूरा भले ही न घूमा जा सके, लेकिन वहां की विरासत को और उसे बनाए रखने के जज्बे को महसूस किया जा सकता है। बेल्जियम के फ्लैंडर्स इलाके के इन चार शहरों की सैर में सबसे ज्यादा वहां के उन इलाकों को देखने का मौका मिला जो सैकड़ों साल का इतिहास अपने में समेटे हुए हैं। रोचक बात यह है कि इन शहरों में सबसे ज्यादा अहमियत उस केंद्रीय इलाके की है जो सबसे पुराना है। आपको छह सौ साल पुरानी इमारतें उसी वैभव के साथ खड़ी मिल जाएंगी। एक-दो नहीं, कतार की कतार। वहां के भव्य चर्च सत्ता के साथ-साथ शिल्प, कला व संस्कृति के भी केंद्र रहे हैं। वे अपने मूल स्वरूप में आपको नजर आ जाएंगी। जेन वेन एक और पॉल रुबेंस जैसे मध्यकालीन चित्रकारों की पेंटिग्स अब भी आपको गेंट व एंटवर्प के चर्चों की शोभा बढ़ाती मिल जाएंगी। चार-पांच सौ साल पुराने घंटाघर (बेलफ्रे टॉवर) अब भी उसी शानौ-शौकत के साथ खड़े हैं। इतिहास तो हमारा कम समुद्ध नहीं, लेकिन हम दिल्ली में भी चार-पांच सौ साल पुरानी इमारतें ढूंढने जाएं तो लाल किले व कुतुब मीनार के अलावा कुछ संरक्षित नजर नहीं आता।

हैरत की बात तो इस विरासत को सहेजने में बेल्जियम के आम लोगों का जज्बा है। वहां के लोगों में अपने शहरों को लेकर एक लगाव है और अभिमान है। ब्रुसेल्स में वह रेस्तरां भी है जहां कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो लिखा था। वहां आज कुछ लिखा नहीं लेकिन हमारा गाइड हमें यह बताने से नहीं चूकता। यही वजह है कि लोग खुद अपने शहर को अच्छा रखने के प्रति जुनूनी नजर आते हैं। कुछ ऐसा ही जुनून एंटवर्प में हमें नए मास (एमएएस, जिसका अर्थ यहां नदी के किनारे संग्रहालय से है) म्यूजियम के प्रति नजर आया। म्यूजियम के उदघाटन में दो दिन बाकी थे। लेकिन सारा शहर मानो वहां उमड़ा पड़ा था। यकीनन मास आधुनिक शिल्प का बेहतरीन नमूना है, लेकिन उसके प्रति एंटवर्प के लोगों में उत्साह आंखें खोलने वाला था। इस संग्रहालय में एंटवर्प और उसके लोगों के इतिहास से जुड़ी 4.70 लाख वस्तुएं प्रदर्शित हैं। इतना ही नहीं, इस संग्रहालय के टॉप फ्लोर पर बने रेस्तरां में एक टेबल की बुकिंग के लिए छह हफ्ते की वेटिंग है। क्या हम अपने देश में किसी शहर में किसी संग्रहालय के उदघाटन में आम लोगों के इस तरह उमडऩे की कल्पना कर सकते हैं? चार दिन यह समझने के लिए भी काफी थे।

चार दिन उस विविधता को समझने के लिए भी काफी थे जो हमें एक-एक घंटे के सड़क मार्ग के फासले पर बसे इन शहरों में नजर आई। ब्रुज एक शांत शहर है, मानो इतिहास की गोद में बैठा हुआ, जहां की नहरें उसे वेनिस की सी शक्ल देती हैं। गेंट नौजवानों की मस्ती में डूबा हुआ शहर है, क्योंकि वह फ्लेमिश इलाके की शिक्षा का गढ़ है। एंटवर्प तो अपने फैशन उद्योग व हीरों की चमक के लिए दुनिया में विख्यात है ही। वहीं, आधुनिक ब्रुसेल्स में न केवल राजधानी होने की बल्कि यूरोप के एकीकृत स्वरूप का केंद्र होने की गहमागहमी है। जो बात सब जगह साझी है वह है, जिंदगी खुलकर जीने की आजादी और लोगों व माहौल की खूबसूरती। साझी वह शाम है जिसमें रात दस बजे तक इतनी रोशनी होती है कि हम अपने यहां के शाम के छह बजे से भ्रमित हो जाएं। साझी वह ठंडक है जो उनके यहां की गर्मियों में भी हमें शाम को कंपकंपा जाए। साझी वह अभिव्यक्ति भी है जो गेंट की ग्राफिटी स्ट्रीट और ब्रुसेल्स के कॉमिक स्ट्रिप म्यूजियम में देखी जा सकती है। उन कलाकृतियों में भी जो हर शहर में हर मोड़ पर कहीं न कहीं आपको नजर आ जाएंगी।

एक चीज जो चार दिन में नहीं की जा सकी, वो थी वाटरलू की सैर। हमारे इलाके में इतिहास के जानकार बेल्जियम को वाटरलू की लड़ाई से भी पहचानते हैं, जिसमें महान नेपोलियन को शिकस्त का सामना करना पड़ा था। लेकिन फ्लैंडर्स टूरिज्म के न्योते पर हुई इस सैर में वाटरलू थोड़ा दूर, अछूता रह गया।

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फ्रेंच फ्राइज व बीयर भी

चॉकलेट के अलावा खान-पान की दो और चीजों को आप बेल्जियम में खास तौर पर महसूस करेंगे- फ्राइज और बीयर। आलू से बनी फ्राइज को आम तौर पर हम फ्रेंच फ्राइज के नाम से जानते हैं, लेकिन वे हमारे यहां सामान्य खान-पान का हिस्सा उस तरह से नहीं जैसे बेल्जियम में हैं। फ्रेंच फ्राइज की पैदाइश कहां की है, यह दावा करने की स्थिति में ठीक-ठीक कोई नहीं। लेकिन इन दावों में एक बेल्जियम का भी है। बेल्जियम के पत्रकार जो गेरार्ड ने दावा किया था कि 1680 में स्पेनिश नीदरलैंड्स के इलाके में सर्दियों में मछली पकडऩा मुश्किल होने पर आलू को छोटी मछलियों की तरह काटकर ओवन में रख दिया जाता था। लेकिन उनके इस दावे को ज्यादा समर्थन नहीं मिलता। हालांकि 18वीं सदी के बाद में आलू के इस तरह के इस्तेमाल की बात सामने आती है। कहा यह भी जाता है कि इन फ्राइज के नाम में फ्रेंच शब्द अमेरिकी सैनिकों ने पहले विश्व युद्ध के समय जोड़ दिया जब वे बेल्जियम में आए क्योंकि तब बेल्जियम की सेना की सरकारी भाषा फ्रेंच थी। वह फ्राइज की लोकप्रियता का दौर था। कालांतर में वह इलाके के कई देशों की सबसे पसंदीदा स्नैक्स बन गई।

फ्राइज की ही तरह बीयर भी उस इलाके के देशों बेल्जियम, नीदरलैंड्स व जर्मनी का खास पेय है। बीयर की उत्पत्ति पर भी कई लोगों का दावा है। हालांकि यह तो माना ही जा सकता है कि यह मध्यकालीन यूरोप की उपज है। बेल्जियम के फ्लैंडर्स इलाके के मिथकीय राजा गैम्ब्रिनस को बीयर अथवा बीयर ब्रू करने की कला का जनक माना जाता है। खैर कब व कहां के विवाद में हम क्यों पड़ें, हमें तो स्वाद से मतलब। उस लिहाज से देखें तो बेल्जियम पीने वालों के लिए भी जन्नत से कम नहीं। बीयर और जिन की जितनी किस्में वहां आपको एक साथ मिल जाएंगी, उतनी मैंने कभी सुनी तक नहीं। केले से लेकर केसर तक, मानो आप स्वाद की कल्पना कीजिए और उसकी बीयर व जिन हाजिर है। ब्रुसेल्स के डेलिरियम कैफे का नाम तो गिनीज बुक में इसलिए दर्ज है कि वहां 9 जनवरी 2004 को गिनती किए जाने पर 2004 तरह की बीयर पीने व बिकने के लिए उपलब्ध थीं।

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क्या लज्जत है

परदेस में खाना सबसे बड़ी चिंता होती है। क्या खाएं और कहां खाएं? यूरोप के ठंडे देश आम तौर पर मांसाहारी होते हैं। खाने और लज्जतदार खाने और फुर्सत से खाने की जो परंपरा बेल्जियम में है, उसे देखकर यह हैरानी ही होगी कि वहां आम तौर पर कोई मोटे लोग आपको देखने को न मिलेंगे। फुर्सत की बात यहां इसलिए कही कि गेंट में नहर के ठीक सामने बेल्गा क्वीन रेस्तरां में रात का लजीज खाना खाने में हमें तीन घंटे लगे, क्योंकि तीन कोर्स का भोजन तसल्ली से खाया जाए तो वहों यह सामान्य बात है। बहरहाल, गोश्त व सी-फूड के शौकीन हों तो क्या कहने, लेकिन आप शाकाहारी हों तो भी ज्यादा चिंता की बात नहीं। विकल्प हैं, बेशक वे यूरोपीय स्वाद के ही होंगे। भारतीय रेस्तरां अमेरिका, ब्रिटेन या जापान की तरह तो नहीं लेकिन फिर भी हैं। ब्रुज में भवानी है तो ब्रुसेल्स में महारानी, गेंट में नहर के किनारे राज व आना-जाना है तो एंटवर्प में उर्वशी व संगम। जब हम शाकाहारी खाने की बात कर रहे हैं तो यह कम हैरानी की बात नहीं कि यूरोप में शाकाहारियों का सबसे ज्यादा अनुपात (साढ़े छह फीसदी) बेल्जियम में ही है। गेंट में तो शाकाहार की विशेष संस्था है और वहां बृहस्पतिवार को वेजी-डे मनाया जाता है। शहर प्रशासन ने इस दिन को मनाए जाने का आधिकारिक समर्थन किया और इस तरह से गेंट एक साप्ताहिक शाकाहार दिवस मनाने वाला दुनिया का पहला शहर बन गया। हालांकि इसका यह मतलब कदापि नहीं कि उस दिन गेंट में मांस खाया नहीं जाता, बस शाकाहार को प्रोत्साहन दिया जाता है। गोश्त या शाक, जो भी खाएं, उसके बाद वहां के डेजर्ट कतई मिस न करें। वो स्वाद आपको अपने देश में न मिलेगा।