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Sunday, January 27, 2013

चलो कैलास


अपनी दुर्गमता की वजह से कैलास-मानसरोवर यात्रा धार्मिक आस्था का तो चरम है ही, प्रकृति के आनंद का भी चरम है। विडंबना की बात यही है कि भारत से कैलास जाना समय व धन, दोनों के लिहाज से दुरूह है। कैलास पर्वत व मानसरोवर झील, दोनों ही चीन में हैं।

Chortens and Kailash Parbat
सरकारी यात्रा: भारत से सीधे वहां जाने का एक ही तरीका है, और वह है विदेश मंत्रालय द्वारा हर साल आयोजित की जाने वाली कैलास-मानसरोवर यात्रा। इस साल यह यात्रा 9 जून से 9 सितंबर के बीच आयोजित की जाएगी। इस दौरान यात्रियों के कुल 18 दस्ते जाएंगे। हर ग्रुप में अधिकतम 60 यात्री ही होंगे। इसके लिए आवेदन मांग लिए गए हैं और आवेदन जमा कराने की अंतिम तारीख 11 मार्च है। कुल 22 दिन की यह यात्रा दिल्ली से शुरू होती है। उत्तराखंड में धारचूला तक का रास्ता बस से पूरा होता है और उसके आगे का सफर पैदल करना होता है। लिपुलेख के रास्ते चीन की सीमा में प्रवेश करने से पहले भारत में चार दिन का यह ट्रैक काफी दुष्कर होता है। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह सबसे खूबसूरत रास्तों में से भी एक है। खास तौर पर नाभीढांग में ओम पर्वत का नजारा बेहद दुर्लभ है। लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि कैलास-मानसरोवर यात्रा पर जाना, हरेक के बस की बात नहीं। केवल इसलिए नहीं कि वह काफी श्रमसाध्य होती है, बल्कि इसलिए भी कि यह बेहद खर्चीली भी होती है। खर्च का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकारी यात्रा पर भी एक यात्री का लगभग सवा लाख रुपये तक खर्च हो जाता है। इसके लिए शर्तें भी कड़ी होती हैं, औपचारिकताएं भी कई सारी पूरी करनी होती है और उसके बाद जाने वाले यात्रियों के लिए सारे आवेदकों में से ड्रा निकाला जाता है। यात्रियों की सुविधा के लिए हिमाचल प्रदेश के रास्ते कैलास का दूसरा रास्ता भी खोले जाने की योजना रही है लेकिन अभी उस पर आगे कोई काम नहीं हुआ है।

बरास्ता नेपाल: लेकिन कैलास-मानसरोवर जाने का एक रास्ता नेपाल होकर भी है। यह रास्ता खर्च, समय व तकलीफ- तीनों लिहाज से कम है। इसलिए अब कई भारतीय नेपाल होकर कैलास-मानसरोवर जाने लगे हैं। इ रास्ते कैलास जाने वालों की कोई समय-सीमा या संख्या सीमा भी नहीं है। इसलिए भारत व नेपाल में कई टूर ऑपरेटर कैलास-मानसरोवर यात्रा पर ले जाने लगे हैं। इन यात्राओं में भी दो तरीके हैं। एक तो वाहन पर सैर करते हुए है और दूसरा, जिसमें नेपाल के भीतर का काफी रास्ता हेलीकॉप्टर के जरिये पूरा कर लिया जाता है। चीन के भीतर कैलास व मानसरोवर तक की यात्रा भी वाहन पर पूरी कराई जाती है। बस परिक्रमा का कुछ हिस्सा पैदल ट्रैक करके पूरा करना होता है। वाहन से की जाने वाली यात्रा पर प्रति यात्री 75 हजार से 90 हजार रुपये तक का खर्च आता है। यह अलग-अलग ऑपरेटरों द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं, यात्रा के रास्ते आदि पर निर्भर करता है। वहीं हेलीकॉप्टर की मदद से पूरी की जाने वाली यात्रा में प्रति यात्री डेढ़ लाख रुपये तक का खर्च आता है। यह अंदाजा लगाया ही जा सकता है कि प्राइवेट ऑपरेटरों की वजह से यात्रा के शुल्क में प्रतिस्पर्धा और बारगेनिंग की भी काफी भूमिका रहती है।
तैयारी जरूरी: कैलास पर्वत व मानसरोवर झील, दोनों ही काफी ऊंचाई पर स्थित हैं। इसलिए वहां जाने के लिए शारीरिक रूप से काफी तैयारी की जरूरत होती है। कैलास परिक्रमा में पांच हजार मीटर तक की ऊंचाई को पार करना पड़ता है। चरणस्पर्श की ऊंचाई तो 5340 मीटर बताई जाती है। ऊंचाई पर होने की वजह से यहां साल के ज्यादातर समय बर्फ का साम्राज्य होता है। इसलिए यह यात्रा मई के बाद ही संभव हो पाती है और सिंतबर के बाद यहां जा पाना मुमकिन नहीं होता। इस दौरान भी मौसम अनुकूल रहे तो इसे कुदरत की मेहरबानी समझना चाहिए।

वेल्स में सबसे लंबी जिप लाइन


रोमांचप्रेमियों के लिए जिप लाइन या जिपिंग एक बड़ा आकर्षण होता है। एक ऐसा रोमांच जिसमें कम जोखिम में भी मजा भरपूर होता है। जिपिंग में आप एक खास किस्म का फ्लाइंग स्यूट पहनकर तार से लटक जाते हैं और इस तार के सहारे आप हवा में मानो उड़ते हुए फर्राटा भरते हैं। भारत में भी इस तरह के कई जिपटूर अब लोकप्रिय हो रहे हैं। यूके के वेल्स में बानगोर के निकट बेथेस्दा में इस साल मार्च से जिप वल्र्ड नाम से एक नई जिप लाइन शुरू हो रही है। इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह यूरोप की सबसे लंबी जिप लाइन है। लगभग एक मील (1700 मीटर) से भी ज्यादा लंबी इस जिपलाइन पर आप सौ किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा की रफ्तार से उड़ान भर सकते हैं। और भी रोमांचक बात यह है कि इस जिप लाइन में जमीन से अधिकतम ऊंचाई पांच सौ फुट से भी ज्यादा है। एक पुरानी खदान पर बनाई गई इस जिप लाइन की उड़ान में आप पहाड़ी झील भी पार करेंगे। एक बिंदु पर तो आप इस झील से सात सौ फुट ऊपर उड़ान भर सकेंगे। यह इलाका भी काफी रोमांचक है। उत्तरी वेल्स की पहाडिय़ों में यहां घूमना और जिपिंग करना दो सौ साल के इतिहास में सैर करने जैसा है। जिस हिस्से में जिप वर्ल्ड है, वह दस साल पहले इस्तेमाल में आना बंद हो गया था। आज यहां यूरोप की सबसे लंबी व तेज गति वाली जिप लाइन है। बड़ी जिप लाइन पर उड़ानभरने से पहले यहां एक छोटी जिप लाइन भी है जो लगभग पांच सौ मीटर लंबी है। यह पूरा अनुभव तीन से चार घंटे का है और बेहद यादगार।