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Thursday, December 2, 2010

केरल की आबोहावा में होकर तरोताजा

ललाट पर गिरकर कपाट के साथ बहते गर्म तेल से मानो भीतर की सारी थकान, जडता पिघल-पिघल कर नीचे रिस रही थी। मेरे लिए यह पहला अनुभव था। इतना घूमने के बाद भी स्पा या आयुर्वेदिक मसाज के प्रति कोई उत्साह मेरे भीतर नहीं जागा था, पहली बार केरल जाकर भी नहीं। इसलिए केरल की दूसरी यात्रा में कैराली में मिला यह अहसास काफी अनूठा था क्योंकि शिरोधारा के बारे में काफी कुछ सुना था।
माथे पर बहते तेल को एक जोडी सधे हाथ सिर पर मल रहे थे। दूसरे जोडी हाथ बाकी बदन का जिम्मा संभाले हुए थे। यूं तो अभ्यांगम समूचे बदन पर मालिश की अलग चिकित्सा अपने आप में है, लेकिन बाकी तमाम चिकित्साओं में भी सीमित ही सही, कुछ मालिश तो पूरे बदन की हो ही जाती है। फिल्मों, कहानी-किस्सों में राजाओं, नवाबों, जागीरदारों की मालिश करते पहलवानों के बारे में देखा-सुना था, मेरे लिए यह साक्षात वैसा ही अनुभव था। फर्क बस इतना था कि दोनों बगल में पहलवान नहीं थे बल्कि केरल की पंचकरमा और आयुर्वेद चिकित्सा में महारत हासिल दो मालिशिये थे। हर हाथ सधा हुआ था। निपुणता इतनी कि बदन पर ऊपर-नीचे जाते हाथों में सेकेंड का भी फर्क नहीं। ट्रीटमेंट कक्ष में कोई घडी नहीं थी लेकिन पूरी प्रक्रिया के तय समय में कोई हेरफेर नहीं। थेरेपिस्ट की कुशलता और उसका प्रशिक्षण कैराली की पहचान है। लगभग पचास मिनट तक गहन मालिश के बाद शरीर के पोर-पोर से मानो तेल भीतर रिसता है (बताते हैं कि शिरोधारा में लगभग दो लीटर तेल माथे पर गिरता है, तेल में नहाना तो इसके लिए बडी सामान्य सी संज्ञा होगी)। जिन्हें इसका अनुभव नहीं है, उनके लिए पहला मौका बडा मिला-जुला होगा, कभी बदन पर गरम तेल रखे जाते ही बेचैनी सी होगी तो, कभी लगेगा मानो बदन टूट रहा हो और कभी निचुडती थकान आपको मदहोश सा कर देगी। लेकिन कुल मिलाकर ऐसा पुरसुकून अहसास जो आपको पहली बार के बाद दूसरी बार के लिए बुलाता रहेगा।
मालिश, जिसे रिजॉर्ट अपनी भाषा में ट्रीटमेंट या थेरेपी कहते हैं (आखिर मालिश बडा देहाती-सा लगता है) के बाद चिकना-चिपुडा बदन लेकर स्टीम रूम में ले जाया जाता है। सिर से नीचे के हिस्से को एक बक्से में बंद कर दिया जाता है और उसमें भाप प्रवाहित की जाती है। मालिश से बाद शरीर से निकले तमाम विषाणु भाप के चलते बाहर आ जाते हैं और पांच मिनट के भाप स्नान के बाद गरम पानी से स्नान आपके शरीर को तरोताजा कर देता है। वह ताजगी आपको आपको फिर वहां लौटने के लिए प्रेरित करती है, जैसे कि मुझे, लेकिन मैंने इस बार एलाकिझी थेरेपी चुनी। इसमें कपडे की थैलियों में औषधीय पत्तियां व पाउडर बंधा होता है और उन थैलियों को गर्म तेल में भिगोकर उससे पूरे बदन की मालिश की जाती है।
थेरेपी केरल व कैराली में कई किस्म की हैं। आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा के हाल में बढे प्रभाव के कारण बडी संख्या में लोग अलग-अलग मर्ज के इलाज के लिए यहां आने लगे हैं। लेकिन कैराली समेत यहां के तमाम रिजॉर्ट रोगों के इलाज के साथ-साथ आपके रोजमर्रा के जीवन के तनाव को कम करने और आपको नई ऊर्जा देने के लिए भी पैकेज डिजाइन करते हों। और तो और केरल के आयुर्वेद रिजॉर्ट हनीमून तक के लिए पैकेज देने लगे हैं। लेकिन बात किसी चिकित्सा पद्धति की हो तो अक्सर बात उसकी प्रमाणिकता की भी उठती है। उनकी काबिलियत उसी आधार पर तय होती है। आयुर्वेद को भुनाने को लेकर हाल में जिस तरह की होड शुरू हुई है, उसमें यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि आप जहां जा रहे हैं, वहां आपको आयुर्वेद के नाम पर ठगा और लूटा तो नहीं जा रहा। क्योंकि अव्वल तो वैसे ही ये पैकेज महंगे होते हैं, दूसरी ओर सामान्य अपेक्षा यह होती है कि आप कुछ दिन रुककर पूरा ट्रीटमेंट लें, तो खर्च उसी अनुपात में बढ जाता है। केरल के पल्लकड जिले में स्थित कैराली आयुर्वेद रिजॉर्ट (कोयंबटूर से 60 किमी) को नेशनल जियोग्राफिक ट्रैवलर ने दुनिया के पचास शीर्ष वेलनेस स्थलों में माना है। किसी आयुर्वेद रिजॉर्ट की अहमियत उसके ट्रीटमेंट के साथ-साथ वहां के वातावरण, माहौल, आबो-हवा, खानपान और चिकित्सकों से भी तय होती है। कैराली के पास न केवल अपना ऑर्गनिक फार्म है जहां रिजॉर्ट में इस्तेमाल आने वाली सारी सब्जियां उगाई जाती हैं, बल्कि एक एकड में फैला हर्बल गार्डन भी है, जहां केरल में मिलने वाले ज्यादातर औषधीय पौधों को संरक्षित करने की कोशिश की गई है।
15 एकड में फैले रिजॉर्ट में हजार से ज्यादा नारियल के वृक्ष हैं और नौ सौ से ज्यादा आम के। इतनी हरियाली और इतनी छांव कि तपते सूरज की गरमी और बरसते आसमान का पानी नीचे आप तक पहुंचने में कई पल ज्यादा ले लेता है।

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