नई पीढ़ी जोखिम लेने से नहीं डरती। यह आंख बंद करके छलांग लगाने वाली नहीं बल्कि खुली आंखों से छलांग लगाने वाली पीढ़ी है- चाहे छलांग हवा में लगानी हो या पानी के तेज धार में। यही कारण है कि आज एडवेंचर टूरिज्म युवाओं के बीच पहले से कहीं ज्यादा लोकप्रिय है। बस एक मौका और कुछ तूफानी करने की इच्छा जोर मारने लगती है
It used to be highest village in world not so long ago |
Way to Kinnaur valley is just amazing |
बहरहाल, किब्बर से लौटते हुए ढलान में पथरीले मोड़ पर मेरी बाइक ने थोड़ा सा संतुलन खोया और फिसल पड़ी। मैं धराशायी हो गया। दो दिन में ठीक इसी तरह से मैं दूसरी बार गिरा था। काजा से पहले ढंकर गोम्पा से नीचे उतरते हुए भी यही हुआ था। उस समय तो बाइक पर पीछे दोनों तरफ सामान लदा था, इसलिए गिरने का सारा असर उस सामान ने झेल लिया था। लेकिन किब्बर से लौटते हुए बचाने को सामान न था। इसलिए थोड़ा असर शरीर ने और बाकी बाइक ने झेला। संभला और उठ खड़ा हुआ। मैं मोड़ पर पहाड़ की तरफ गिरा था। दूसरी तरफ सैकड़ों फुट नीचे घाटी में स्पीति नदी बह रही थी। बाईं ओर दूर घाटी में काजा दिखाई दे रहा था और सामने दाईं ओर लोसर होते हुए कुंजम टॉप जाने का रास्ता। ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं जहां तक नजर जाती थी, किसी इंसान का नामों-निशान तक न था। एकबारगी डर लगा कि कहीं कुछ हो जाए तो दूर-दूर तक कोई मदद करने वाला नहीं। लेकिन कपड़ों की मिट्टी की ही तरह मैंने डर को भी झाड़ा और निकल पड़ा। एडवेंचर का शायद यही सिला है।
न तो रास्ता अनोखा था और न मेरा सफर, लेकिन था बेहद रोमांचकारी। इसीलिए दुनियाभर से हर साल कई धुन के पक्के बाइकर्स इसी रोमांच को अपने भीतर उतारने के लिए लाहौल या स्पीति घाटियों की सैर पर निकल पड़ते हैं। मंजिल या तो लेह होती है या फिर काजा। एडवेंचर बाइकिंग के शौकीनों के लिए यह मक्का के समान हैं। मेरे लिए भी था। मेरी ही तरह कई सिरफिरे ऐसे भी होते हैं जो अकेले निकल पड़ते हैं। तिसपर मैं तो सीजन की शुरुआत में ही निकल पड़ा था, जब न तो रास्ते खुले थे, न होटल। मौसम भी खुशगवार होना शुरू न हुआ था। यही कारण था कि मैं कोमिक जाने की हिम्मत न जुटा पाया क्योंकि लांगजा से आगे का रास्ता बर्फ की पतली चादर से ढका था जिसपर बाइक चलाना मुश्किल था। कुंजम टॉप का रास्ता भी लोसर के आगे खुला न था। अकेले दुस्साहस करने का जोखिम मैंने मोल न लिया।
Spiti valley has altogether different terrain |
कुंजम ला (दर्रा) लाहौल व स्पीति घाटियों को जोड़ता है। जो बाइकर्स स्पीति की तरफ जाना चाहते हैं, वे शिमला से आगे नारकंडा, रामपुर-बुशहर होते हुए किन्नौर घाटी में पहुंचते हैं और फिर वहां से पूह, नाको व ताबो होते हुए स्पीति के मुख्य शहर काजा में पहुंचते हैं। इस इलाके को ठंडा रेगिस्तान भी कहा जाता है। जो लोग लाहौल घाटी में जाना चाहते हैं वे मनाली से रोहतांग व कीलोंग होते हुए लाहौल घाटी में प्रवेश करते हैं और दुनिया के कई सबसे ऊंचे वाहनयोग्य दर्रों (16 हजार फुट की ऊंचाई से भी ज्यादा) को पार करके लद्दाख इलाके में पहुंचते हैं। रोहतांग व कीलोंग के बीच ग्रम्फू नाम की जगह है जहां से एक रास्ता कुंजम ला के लिए निकलता है। जो बाइकर्स काजा जाते हैं और उसी रास्ते वापसी नहीं करना चाहते, वे काजा से लोसर होते हुए कुंजम ला पार करके ग्रम्फू के रास्ते रोहतांग व मनाली आ जाते हैं। वहां से वे दिल्ली या चंडीगढ़ निकल जाते हैं। उसी तरह लेह जाने वाले उसी रास्ते वापसी न करने के लिए लेह से कारगिल के रास्ते श्रीनगर निकल जाते हैं और वहां से जम्मू होते हुए वापसी करते हैं। जिनके पास ज्यादा वक्त जेब में हो और एक ही ट्रिप में लौहाल व स्पीति, दोनों घाटियां नापने की फिराक में हों, वे काजा से आगे कुंजम ला पार करने के बाद ग्रम्फू से बजाय मनाली की तरफ आने के कीलोंग की तरफ होते हुए लेह निकल जाते हैं। दोनों ही रास्ते दुर्गम व दुष्कर हैं। दोनों घाटियों को एक सफर में पार करना बेहद कष्टसाध्य है और इसे एडवेंचर (सिरफिरेपन) की इंतिहा भी कहा जा सकता है।
इस एडवेंचर में थोड़ा जोखिम है, बहुत मेहनत है लेकिन उतना ही सुख व सुकून है। इतने कष्ट के बाद प्रकृति का जो नजारा आंखों के सामने आता है, वह कल्पनातीत है। कुछ फोटो देखकर उसे महसूस नहीं किया जा सकता। इसीलिए जिन्हें मौका मिलता है, वे इसका अहसास वहां जाकर जरूर करते हैं। चाहे वे बाइक से जाएं या चौपहिया से या फिर बस में ही। कई साहसी स्कूटर से भी ये रास्ते नाप लेते हैं। लाहौल-स्पीति के इलाके को बर्फीला रेगिस्तान कहा जाता है। इतनी ऊंचाई पर, इतने दुर्गम इलाके में क्यों व कैसे इंसान बसते हैं और किस तरह सदियों से वहां की विशिष्ट संस्कृति को बचाए हुए हैं, यह जानना-समझना भी उतना ही रोमांचक है।
Biking in Himalayas is fun |
(आउटलुक हिंदी के पर्यटन विशेषांक- मार्च-अप्रैल 2013, में प्रकाशित)
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