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Tuesday, April 30, 2013

सेतुबंध के ये रामेश्वर


राम की कथा से रामेश्वरम का गहरा नाता उसे मिथकों में वही दर्जा दिला देता है जो देश के तमाम पौराणिक शहरों को हासिल है। इसमें कोई शक नहीं कि रामेश्वरम की ज्यादातर महत्ता रामनाथस्वामी मंदिर के लिए है, लेकिन रामेश्वरम की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक खूबसूरती उसे बाकी लिहाज से भी आकर्षण का केंद्र बनाती है

Greater Flamingos at Rameshwaram
धनुष्कोडी से रामेश्वरम लौटते समय इस नजारे की कल्पना मैंने नहीं की थी। जब रामेश्वरम नजदीक आने लगा और मेरी निगाहें अचानक समुद्र की ओर गईं तो मैं किनारे से थोड़ी ही दूर हजारों की तादाद में फ्लेमिंगो देखकर अचंभित रह गया। दुनिया के इस हिस्से में पाए जाने वाले ग्रेटर फ्लेमिंगो भारत के कई तटीय इलाकों में दिख जाते हैं। चिलिका झील के नलबन द्वीप में मैं फ्लेमिंगो देख चुका था, लेकिन यहां वे काफी नजदीक थे और खासी बड़ी संख्या में भी। रामेश्वरम की इस खासियत के बारे में मुझे नहीं पता था। फ्लेमिंगो देखने के बाद इस यात्रा को लेकर बड़ी सुखद सी अनुभूति हो रही थी। और यह नजारा ठीक समुद्र तट पर स्थित उस कोडंडारामास्वामी मंदिर के बगल में देखने को मिला जो विभीषण के नाम पर बना है। कहा जाता है कि यह मंदिर ठीक उसी जगह पर बना है जहां लंका छोडऩे के बाद विभीषण ने राम से पहली बार मुलाकात की थी। युद्ध समाप्त होने के उपरांत बाद में इसी स्थान पर राम ने लंकाधिपति के तौर पर विभीषण का राज्याभिषेक किया था। धनुष्कोडी में तीन तरफ फैले अथाह समुद्र और चालीस साल पहले समुद्री चक्रवात के बाद पानी के भीतर समा गई एक नगरी के भग्नावशेष देखने के बाद सफेद-गुलाबी फ्लेमिंगो के कई झुंड देखकर बहुत सुकून मिला।
Outer Corridor of the Ramanathswamy Temple
हमारे मिथकीय तीर्थस्थानों में रामेश्वरम सबसे पूजनीयों में से एक है। चूंकि यहां राम ने शिव की आराधना की थी, इसलिए यह उन गिने-चुने स्थानों में से एक है जो शैवों व वैष्णवों, दोनों के लिए समान रूप से श्रद्धा का केंद्र है। इसके अलावा यह देश के चार कोनों में स्थित चार मूल धामों में से एक है। रामनाथस्वामी मंदिर खुद तो सबसे बड़े तीर्थों में से एक है ही, साथ ही वहां भारत के तमाम बाकी तीर्थों में स्नान का भी लाभ मिलता है। रामेश्वरम में दरअसल कई तीर्थ है और मान्यताओं के अनुसार उन सभी में स्नान करने के बाद वस्त्र बदलकर भक्त मंदिर में दर्शन के लिए जाते है। लेकिन स्नान व दर्शन की आस्था से इतर शिल्प के लिहाज से भी यह मंदिर बेहद शानदार है। दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली में बना मंदिर परिसर बेहद भव्य व विशाल है और गर्भगृह तीन वृत्ताकार गलियारों से घिरा है। इनमें से सबसे बाहरी गलियारे को दुनिया का सबसे बड़ा गलियारा कहा जाता है। इसमें 1212 स्तंभ है, जिनपर खूबसूरत चित्रकारी की गई है। सारे स्तंभों की अपनी खास नक्काशी भी है।
मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं। कथा यह है कि लंका युद्ध के दौरान जब राम ने शिव की आराधना करनी चाही तो उन्होंने हनुमान से शिवलिंग लाने को कहा। जब हनुमान को देर लगी तो सीता ने राम की पूजा के लिए शिवलिंग बनाया। बाद में जब हनुमान हिमालय से शिवलिंग लेकर लौटे तो राम ने उसकी भी पूजा का आदेश दिया। मान्यता यह है कि हनुमान के लाए विश्वलिंगम की पूजा पहले होती है और सीता के बनाए रामलिंगम की पूजा उसके बाद। माना जाता है कि रामेश्वरम में मुख्य मंदिर और उसके आसपास कुल 64 तीर्थ हैं (जिनमें स्नान करने की परंपरा है)। रामेश्वरम की सारी संरचना रामकथा के इर्द-गिर्द है, इसलिए यहां आपको गंधमादन पर्वत भी मिल जाएगा और राम की चरण-पादुका भी। यहां आपको पंचमुखी हनुमान मंदिर में रखी मूंगे की वो चट्टानें भी दिख जाएंगी जिनका इस्तेमाल पौराणिक कथाओं के अनुसार नल-नील ने समुद्र पर सेतु बनाने के लिए किया था। रामेश्वरम शहर से थोड़ा पहले विलूंदी तीर्थम भी है जहां समुद्र के बीच में मीठे पानी का स्रोत है। कहा जाता है कि राम ने सीता की प्यास बुझाने के लिए यहां समुद्र में अपना बाण डुबोया था।
Viloondi Teertham
लेकिन तमाम मान्यताओं व श्रद्धाओं के बीच हकीकत यह है कि रामेश्वरम बंगाल की खाड़ी में पांबन द्वीप पर स्थित खूबसूरत शहर है। रामेश्वरम व धनुष्कोडी का इलाका मुख्यतया मछुआरों का रहा है। जाहिर है कि यहां की समूची अर्थव्यवस्था दो ही चीजों पर आधारित है- तीर्थाटन और मछली। हालांकि रामेश्वरम को बीच डेस्टिनेशन के तौर पर कभी प्रोमोट नहीं किया गया लेकिन समुद्र से लगा उसका इलाका बेहद खूबसूरत है। जैसे कि विलूंदी तीर्थम को सिर्फ प्राकृतिक खूबसूरती के लिहाज से देखा जाए तो सामने पसरा नीला समुद्र मन मोह लेने वाला है।

धनुष्कोडी
Dhanushkodi: Way to Sangam
रामेश्वरम जाकर धनुष्कोडी का जिक्र न करना नामुमकिन है। धनुष्कोडी का महत्व दो तरीके से है। पांबन द्वीप में धनुष्कोडी के सिरे से ही एडम्स ब्रिज शुरू होता है, जिसे हिंदू मान्यताओं में रामसेतु की संज्ञा दी जाती है। धनुष्कोडी जाकर समुद्र के विस्तार में इसका अंदाज लगा पाना बेहद मुश्किल है। हां, हवा में उड़ते हुए या सैटेलाइट से यकीनन आप उथले समुद्री पानी के नीचे उस रेतीले बंध का अंदाजा लगा सकते हैं जो भूवैज्ञानिकों के अनुसार कभी भारत व श्रीलंका के बीच जमीनी संपर्क हुआ करता था। कुछ लोग रामेश्वरम मंदिर के पुराने रिकॉर्ड के हवाले से कहते हैं कि 1480 में एक जबरदस्त तूफान के आने से पहले तक यह संपर्क कायम था। धनुष्कोडी का दूसरा पहलू ऐसे ही एक तूफान की देन है। 1964 में 22-23 दिसंबर की रात एक भीषण चक्रवाती तूफान के आने से पहले धनुष्कोडी एक जीवंत बंदरगाह शहर था और मदुरै से आने वाली रेल लाइन का आखिरी सिरा। तब रामश्वेरम में केवल मंदिर था और मंदिर पहुंचने के लिए तीर्थयात्रियों को घोड़ागाड़ी करनी होती थी या पैदल जाना होता था। लेकिन उस तूफान ने धनुष्कोडी को उजाड़ दिया और रामेश्वरम को बसा दिया। बताया जाता है कि उस तूफान में धनुष्कोडी के दोनों ओर समुद्र पांच किलोमीटर तक ऊपर चढ़ आया। समुद्र के पानी और रेत के नीचे एक समूचा शहर और सैकड़ों लोग दफन हो गए। धनुष्कोडी में आज भी उस दिल दहलाने देने वाली रात के खंडहरी निशान मौजूद हैं। हर मायने में धनुष्कोडी एक अद्भुत जगह है। धनुष्कोडी से श्रीलंका का मन्नार द्वीप महज 30 ही किलोमीटर दूर है। वहीं रामेश्वरम से धनुष्कोडी की दूरी लगभग 21 किलोमीटर है। इसमें से आठ किलोमीटर तक ही पक्की सड़क है। समुद्र के किनारे पहुंचने पर आगे छह-सात किलोमीटर की धनुष्कोडी गांव की दूरी और और वहां से उतनी ही (बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के) संगम तक की दूरी समुद्र के किनारे-किनारे (बीच में कहीं समुद्र के भीतर भी) रेतीले बियाबान से पूरी करनी होती। यह सफर रोमांचक है लेकिन कई लोगों के लिए कष्टदायक भी हो सकता है।

पांबन के रास्ते
Train passing through Pamban bridge
रामेश्वरम जाने के कई रास्ते हैं- हवाई जहाज से, ट्रेन ने, बस से और जरूरत पड़े तो नाव से भी। रामेश्वरम के लिए सबसे निकट का हवाई अड्डा मदुरै है। लेकिन वो यहां से लगभग 170 किलोमीटर दूर है। कम चौड़ी सड़क पर दोतरफा यातायात और ट्रैफिक देखते हुए इस रास्ते को तय करने में लगभग चार घंटे का समय लग जाता है। रामेश्वरम के लिए तमिलनाडु के बाकी सभी शहरों से लंबी दूरी की बसें भी हैं। लेकिन रामेश्वरम जाने का सबसे बड़ा रोमांच पांबन के रेल पुल से होकर है। पांबन में रेल व सड़क पुल दोनों हैं। लेकिन जब हम पांबन पुल का नाम लेते हैं तो लोगों के जेहन में पांबन का रेल पुल ही आता है। हम इंजीनियरिंग के कमाल की बात करते रहते हैं, लेकिन हममें से ज्यादातर को यह जानकर हैरत होगी कि कुछ साल पहले बने मुंबई-वर्ली सी लिंक से पहले तक यह देश का सबसे बड़ा समुद्री पुल था। लगभग ढाई किलोमीटर लंबा पुल सौ साल पहले अंग्रेजों के समय बनाया गया था। पुल की खास बात यह है कि यह बीच में से उठ जाता है ताकि बड़ी नावें और जहाज खाड़ी से होते हुए समुद्र में इस पार आ-जा सकें। यह पुल देखना ही अपने आप में रामेश्वरम जाने का एक बड़ा आकर्षण है। इस रास्ते होते हुए मदुरै व अन्य जगहों से रोजाना कई ट्रेनें रामेश्वरम जाती हैं।

कब व कहां
Daiwik Hotels at Rameshwaram
दक्षिण भारत के बाकी तटीय इलाकों की ही तरह रामेश्वरम का तापमान पूरे सालभर लगभग एक जैसा रहता है। मानसून के महीनों में जमकर बारिश होती है। सितंबर से मार्च के महीनों में जाएं तो राहत लगती है क्योंकि उस समय उत्तर भारत में ठंडक रहती है। इसलिए बारिश के दिनों को छोड़कर रामेश्वरम जब निकल जाएं, बेहतर। रामेश्वरम में रुकने के सस्ते व अच्छे विकल्प मौजूद हैं। तीर्थनगरी होने की वजह से छोटी-बड़ी कई धर्मशालाएं भी हैं। बेहतर होटलों के स्तर पर दैविक सरीखे होटल भी हैं जो बने ही सुनियोजित तीर्थाटन की परिकल्पना पर हैं। रामेश्वरम जैसी जगह पर तीर्थ के लिहाज से जाने के लिए यह भी जरूरी है कि आपको सारी जगहों की जानकारी हो। दैविक जैसे होटल एक तीर्थ के अनुकूल माहौल देने के साथ-साथ देखने लायक जगहों के बारे में अपने शोध का भी फायदा भी मेहमानों को पहुंचाते हैं। जैसे बहुत कम लोगों को पता होगा कि रामेश्वरम के निकट भी समुद्र के किनारे विवेकानंद स्मारक है। कहा यह जाता है कि शिकागो की जिस यात्रा ने विवेकानंद को दुनियाभर में लोकप्रिय कर दिया, उस यात्रा का सारा खर्च रामनाड के राजा ने ही उठाया था। शिकागो से वापसी में पानी के जहाज के रास्ते विवेकानंद 26 जनवरी 1897 को पांबन में ही उतरे थे जहां रामनाड के राजा भास्कर सेतु ने खुद उनकी आगवानी की थी। आज वहीं विवेकानंद स्मारक है।
Vivekanand Memorial at the sea coast in Pamban

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