हम माले के अहमदी बाजार में राजधानी की सबसे बडी एंटीक व सोवेनियर दुकान में थे। सारे सेल्समैन मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद द्वारा एक दिन पहले कोपेनहेगन में विश्व जलवायु सम्मेलन में दिए गए भाषण को बडे ध्यान से सुन रहे थे। ईमानदारी से कहूं तो मैंने किसी हिंदुस्तानी को राष्ट्रपतियों या प्रधानमंत्री के भाषणों को इतने ध्यान से सुनते नहीं देखा। लेकिन जब इस धरती की एक नायाब रचना के अस्तित्व का ही सवाल हो तो, इतनी गंभीरता लाजिमी ही थी। कई लोगों ने अक्टूबर में मालदीव की कैबिनेट द्वारा पानी के अंदर की गई बैठक को भले ही टोटका समझा हो, लेकिन मालदीव जाकर लगता है कि अगर प्रकृति का कोप इसे हमसे छीन ले तो दुनिया कितनी दरिद्र हो जाएगी। वहां की सुंदरता में कुछ ऐसा ही खास है। उस छोटे से देश में मानो इतनी खूबसूरती समाती नहीं।
सवेरे क्रूज से एक नाव हमें एयरपोर्ट आईलैंड लेकर आई। वहां से हम रनवे का चक्कर काटते हुए पहुंचे ट्रांस मालदीवियन के बेस पर। पिछली शाम जब क्रूज माले के निकट पहुंच रहा था तो हमने ऊपर से गुजर रहे सी प्लेन को तुरंत पहचान लिया। इतनी तस्वीरें जो देखी थी, उसकी। लेकिन तब गुमान न था कि अगले दिन उसमें सवारी का मौका मिलेगा। ट्रांस मालदीवियन के सी प्लेन से हम एक सौ पांच किमी दूर रंगाली द्वीप जाने वाले थे। लगभग हजार मीटर की ऊंचाई तक उडने वाले सी प्लेन से मालदीव के समुद्र में फैले पडे सैकडों रिजॉर्ट व कोरल द्वीपों को देखना अविस्मरणीय था। पानी की यह खूबसूरती कहीं और नहीं मिलेगी। रोमांच व उत्साह से सांसें थाम देने वाली उडान थी वह। लेकिन रंगाली द्वीप पर हिल्टन होटल्स के कोनराड रिजॉर्ट पहुंचकर लगा मानो हम किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गए हों। ऐसी दुनिया में, जिसका बाहर की किसी दुनिया से कोई वास्ता नहीं था। वास्ता इस तरह भी नहीं था कि वहां जैसी खूबसूरती या विलासिता बाहर मिलना मुश्किल था।
कोनराड पर सैर पैदल भी हो सकती है या बैटरी चालित गाडी से भी। जेट्टी से मुख्य द्वीप तक जाते हुए पुल के दोनों ओर जलजीवन का नजारा अद्भुत था। अभी हम आसपास की प्रकृति से खुद को सहज भी नहीं कर पाए थे, कि ऐसी जगह पहुंच गए, अकल्पनीय थी। सीढियों से कई मीटर नीचे समुद्र के पानी में उतरते हुए हम शीशे के ऐसे कमरे में पहुंच गए जो पानी के अंदर था। वह कमरा दरअसल एक डाइनिंग रूम था। सब तरफ शीशों के पार हम विलक्षण किस्म की छोटी-बडी मछलियां, कोरल्स, स्नोर्कलिंग व स्कूबा डाइविंग करते हुए इंसान देख सकते थे।
बाजार की उस सैर से वापस अपने क्रूज पर जाने के लिए जेट्टी की तरफ लौटते हुए, जब निगाहें बरबस सडक के साथ-साथ चलते समंदर के पानी में गईं तो अहसास हुआ कि यहां के लोग इस खूबसूरती की कीमत किस हद तक समझते हैं। पानी इतना साफ था कि लैंपपोस्ट की रोशनी में नीचे कई मीटर गहराई में तैरती मछलियां अपने सारे रंगों के साथ दिखाई दे रही थीं। यह समंदर का वो हिस्सा था जो शहर से एकदम सटा हुआ था। आप भारत के किसी शहर से सटे हुए समुद्र या नदी के पानी में कुछ सेंटीमीटर भी साफ देख सकें तो खुद को खुशकिस्मत पाएंगे। एमवी एक्वामैरिन पर लौटते हुए माले में बिताए हुए शाम के दो घंटे जेहन में घूम रहे थे। कोरल रीफ (मूंगा चट्टानें) यहां का जीवन हैं। यहां तक की आपको कब्रों पर लगे पत्थरों पर भी मूंगा चट्टानें मिल जाएंगी। राष्ट्रपति नाशीद का भाषण सुनने से कुछ ही देर पहले हम उनके सरकारी आवास के बाहर खडे थे। यकीन नहीं होता था कि हम किसी देश की सर्वोच्च शख्सियत के आवास के आगे थे, दूर-दूर तक कोई सुरक्षाकर्मी नहीं था। मजे से हम उसके बंगले के दरवाजे से अंदर हाथ बढाकर महज पचास मीटर दूर बगीचे व बरामदे के फोटो खींच रहे थे। क्या आप भारत में किसी अदने से नेता के घर के बारे में ऐसा सोच सकते हैं? पता तो यह भी चला कि राष्ट्रपति कभी-कभार पैदल ही सडकें पार करते हुए दो ब्लॉक आगे अपने दफ्तर में पहुंच जाते हैं। मालदीव के बारे में हर बात अभिभूत करने वाली थी। इसीलिए मुझे अगले दिन का बेसब्री से इंतजार था। इल्हाम था कि वह दिन खास होने वाला था।
सवेरे क्रूज से एक नाव हमें एयरपोर्ट आईलैंड लेकर आई। वहां से हम रनवे का चक्कर काटते हुए पहुंचे ट्रांस मालदीवियन के बेस पर। पिछली शाम जब क्रूज माले के निकट पहुंच रहा था तो हमने ऊपर से गुजर रहे सी प्लेन को तुरंत पहचान लिया। इतनी तस्वीरें जो देखी थी, उसकी। लेकिन तब गुमान न था कि अगले दिन उसमें सवारी का मौका मिलेगा। ट्रांस मालदीवियन के सी प्लेन से हम एक सौ पांच किमी दूर रंगाली द्वीप जाने वाले थे। लगभग हजार मीटर की ऊंचाई तक उडने वाले सी प्लेन से मालदीव के समुद्र में फैले पडे सैकडों रिजॉर्ट व कोरल द्वीपों को देखना अविस्मरणीय था। पानी की यह खूबसूरती कहीं और नहीं मिलेगी। रोमांच व उत्साह से सांसें थाम देने वाली उडान थी वह। लेकिन रंगाली द्वीप पर हिल्टन होटल्स के कोनराड रिजॉर्ट पहुंचकर लगा मानो हम किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गए हों। ऐसी दुनिया में, जिसका बाहर की किसी दुनिया से कोई वास्ता नहीं था। वास्ता इस तरह भी नहीं था कि वहां जैसी खूबसूरती या विलासिता बाहर मिलना मुश्किल था।
कोनराड पर सैर पैदल भी हो सकती है या बैटरी चालित गाडी से भी। जेट्टी से मुख्य द्वीप तक जाते हुए पुल के दोनों ओर जलजीवन का नजारा अद्भुत था। अभी हम आसपास की प्रकृति से खुद को सहज भी नहीं कर पाए थे, कि ऐसी जगह पहुंच गए, अकल्पनीय थी। सीढियों से कई मीटर नीचे समुद्र के पानी में उतरते हुए हम शीशे के ऐसे कमरे में पहुंच गए जो पानी के अंदर था। वह कमरा दरअसल एक डाइनिंग रूम था। सब तरफ शीशों के पार हम विलक्षण किस्म की छोटी-बडी मछलियां, कोरल्स, स्नोर्कलिंग व स्कूबा डाइविंग करते हुए इंसान देख सकते थे।
वहां सजी मेजों पर बैठकर खाने की कल्पना ही अपने आप में बेहद रोमांचित कर देने वाली थी। माले से सी प्लेन में इस द्वीप पर आकर इसे देखने और अंडरवाटर लंच करने का किराया ही एक आदमी के लिए 47 हजार रुपये है। कोनराड में उतरने के उस पहले आधे घंटे में जो हम देख चुके थे, उसके सम्मोहन से हम खुद को मुक्त न कर सके और आगे आने वाली सारी चीजें उस मोहपाश को सख्त ही करती गईं। चाहे वो पानी पर बना स्पा हो, वाइन सेलर हो, बेहद लजीज कोरल मछली हो, समुद्री फलों का अद्भुत रस हो या 25 हजार डॉलर प्रति रात्रि
किराये वाला सनसेट विला हो, जिसके मास्टर बेडरूम का बेड रिमोट से चारों तरफ घूमता है और आप सामने खुले समुद्र के हर हिस्से को बिस्तर पर लेटे-लेटे निहार सकते हैं- सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक। वहां से लौटने का मन न था। हम लोग अपने पासपोर्ट पानी में बहा देने को तैयार थे। लेकिन जानते थे, यह मुमकिन नहीं था। भारी मन से इसी उम्मीद के साथ लौट पडे कि फिर कभी, किसी मोड पर तकदीर यहां जरूर ले आएगी।