अपनी दुर्गमता की वजह से कैलास-मानसरोवर यात्रा धार्मिक आस्था का तो चरम है ही, प्रकृति के आनंद का भी चरम है। विडंबना की बात यही है कि भारत से कैलास जाना समय व धन, दोनों के लिहाज से दुरूह है। कैलास पर्वत व मानसरोवर झील, दोनों ही चीन में हैं।
Chortens and Kailash Parbat |
बरास्ता नेपाल: लेकिन कैलास-मानसरोवर जाने का एक रास्ता नेपाल होकर भी है। यह रास्ता खर्च, समय व तकलीफ- तीनों लिहाज से कम है। इसलिए अब कई भारतीय नेपाल होकर कैलास-मानसरोवर जाने लगे हैं। इ रास्ते कैलास जाने वालों की कोई समय-सीमा या संख्या सीमा भी नहीं है। इसलिए भारत व नेपाल में कई टूर ऑपरेटर कैलास-मानसरोवर यात्रा पर ले जाने लगे हैं। इन यात्राओं में भी दो तरीके हैं। एक तो वाहन पर सैर करते हुए है और दूसरा, जिसमें नेपाल के भीतर का काफी रास्ता हेलीकॉप्टर के जरिये पूरा कर लिया जाता है। चीन के भीतर कैलास व मानसरोवर तक की यात्रा भी वाहन पर पूरी कराई जाती है। बस परिक्रमा का कुछ हिस्सा पैदल ट्रैक करके पूरा करना होता है। वाहन से की जाने वाली यात्रा पर प्रति यात्री 75 हजार से 90 हजार रुपये तक का खर्च आता है। यह अलग-अलग ऑपरेटरों द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं, यात्रा के रास्ते आदि पर निर्भर करता है। वहीं हेलीकॉप्टर की मदद से पूरी की जाने वाली यात्रा में प्रति यात्री डेढ़ लाख रुपये तक का खर्च आता है। यह अंदाजा लगाया ही जा सकता है कि प्राइवेट ऑपरेटरों की वजह से यात्रा के शुल्क में प्रतिस्पर्धा और बारगेनिंग की भी काफी भूमिका रहती है।
तैयारी जरूरी: कैलास पर्वत व मानसरोवर झील, दोनों ही काफी ऊंचाई पर स्थित हैं। इसलिए वहां जाने के लिए शारीरिक रूप से काफी तैयारी की जरूरत होती है। कैलास परिक्रमा में पांच हजार मीटर तक की ऊंचाई को पार करना पड़ता है। चरणस्पर्श की ऊंचाई तो 5340 मीटर बताई जाती है। ऊंचाई पर होने की वजह से यहां साल के ज्यादातर समय बर्फ का साम्राज्य होता है। इसलिए यह यात्रा मई के बाद ही संभव हो पाती है और सिंतबर के बाद यहां जा पाना मुमकिन नहीं होता। इस दौरान भी मौसम अनुकूल रहे तो इसे कुदरत की मेहरबानी समझना चाहिए।