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Tuesday, December 28, 2010

जो कूदा वो सिकंदर

गहरी उथल-पुथल के बाद शांत होती धडकनों से मैं मुझे दिए गए सर्टीफिकेट को पढ रहा था। मेरे नाम व शहर के बाद लिखा था कि मैंने अपने भीतर छिपे टार्जन को पहचान कर, सिर्फ एक रबर कॉर्ड (रस्सी) के सहारे 83 मीटर से बंजी जंपिंग करके माता पृथ्वी और पितामह ग्रेविटी (गुरुत्वाकर्षण) को गौरवान्वित किया है। सबसे नीचे पुनश्च: में लिखा था- हम शपथपूर्वक कहते हैं कि हमने इन्हें धक्का नहीं दिया। यानि कूदने की हिम्मत मैंने खुद जुटाई थी। सर्टीफिकेट के साथ मिली डीवीडी में इस बात का वीडियो सुबूत भी था। मैं बाकी पूरी उम्र उस डीवीडी को देख और बाकियों को दिखाकर इस बात की तसदीक भी कर सकता था कि मैंने वाकई यह कर डाला था। अब आखिर यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं, भारत की सबसे ऊंची बंजी जंपिंग जो थी। और आपने चाहे जितनी बंजी जंप लगाई हों, बंजी के प्लेटफार्म पर खडे होकर नीचे देखना, हमेशा रोंगटे खडे करता ही है। वो छलांग हर बार भीतर एक हौल पैदा करती ही है। हर बार छलांग लगाने के बाद टांग में रस्सी का खिंचाव होने से पहले के पलों में पेट में खालीपन लगता ही है। न तो यह कोई मामूली चुनौती है और न ही कमजोर दिल वालों के बूते की बात। मजेदार बात यह है कि आप इतनी ऊंचाई से छलांग लगाने के लिए दिल-दिमाग को चाहे जितना तैयार कर लें, मजबूत कर लें.. लेकिन बंजी के प्लेटफार्म पर पहुंचकर और कूदने का अहसास भीतर पसरते ही सारी तैयारी हवा हो जाती है और उसके बाद केवल आप होते हैं और आपकी हिम्मत। फिर जब आप हिम्मत दिखा ही दें तो क्यों न उसके गुण गाएं। भारत के लिए बंजी जंपिंग थोडी नई चीज है। यूं तो बडे शहरों के शॉपिंग मॉल्स और अम्यूजमेंट पार्को में बच्चों को बंजी जंपिंग के नाम पर खूब उछाला जा रहा है, लेकिन वह दरअसल रिवर्स बंजी जंपिंग का बाल स्वरूप है। बंजी जंपिंग जैसा उसमें कुछ नहीं। हां, थोडी बहुत असली बंजी जंपिंग भी हो रही है लेकिन क्रेनों पर लगाए गए 20-30 मीटर ऊंचे प्लेटफार्म से। लेकिन ऋषिकेश के निकट जंपिंग हाइट्स में बंजी के लिए एक विशेष स्थायी प्लेटफार्म पहाडी पर बनाया गया है और वहां से बंजी के लिए नीचे नदिया की धार में 83 मीटर की छलांग लगानी होती है। भारत ही नहीं, संभवतया पूरी दुनिया में खास तौर पर बंजी जंपिंग के लिए तैयार किया गया यह अपनी तरह का अकेला कैंटीलिवर प्लेटफार्म है।
यूं तो दुनिया में छलांग लगाने का इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है और अब कई जगहों पर इससे भी ज्यादा ऊंचाई से व्यावसायिक बंजी जंपिंग होती है, लेकिन ज्यादातर जंप टॉवर, इमारतों, पुलों, बांधों, प्रपातों वगैरह से होती हैं। जंपिंग हाइट्स में बंजी भारत के लिए पहली भी है और अनूठी भी। जंपिंग हाइट्स भारत का अपनी तरह का अकेला एडवेंचर जोन है और किसी शहरी जंगल की बजाय हिमालय की तलहटी में, प्रकृति की गोद में इसका होना इसकी विशेषता है। लेकिन काबिलेतारीफ तो यहां की हर चीज है। इतनी दुष्कर जगह पर इस तरह की सुविधा खडी कर देना हैरत में डालता है। यहां का ढांचा, सुविधाएं, स्टाफ, तकनीक व सुरक्षा इंतजाम, सब विश्वस्तर का है, जैसा आपको आम तौर पर भारत में देखने को नहीं मिलता। वो भी तब जबकि भारत में रोमांचक पर्यटन के लिए कोई दिशानिर्देश तय नहीं हैं। जंपिंग हाइट्स पूर्व सैन्य अफसर राहुल की परिकल्पना है जिन्होंने एनडीए व आईएमए के अपने साथी कर्नल मनोज रावत के साथ मिलकर इसे अमली जामा पहनाया। इस सपने को पूरा होने में चार साल का वक्त लगा। इसकी तकनीकी कुशलता व सुरक्षा इंतजामों से किसी तरह का समझौता न करते हुए न्यूजीलैंड से सबसे काबिल तकनीशियन, ऑपरेटर और जंप मास्टर्स बुलाए गए। यहां की बंजी न्यूजीलैंड के डेविड अलार्डिस ने डिजाइन की है जिन्होंने मकाऊ व नेपाल में भी बंजी डिजाइन कर रखी हैं। बता दूं कि न्यूजीलैंड को इस तरह के रोमांचक खेलों का गढ माना जाता है। लेकिन जंपिंग हाइट्स केवल बंजी जंपिंग नहीं है। वहां पंछियों की तरह उडने के लिए फ्लाइंग फोक्स भी है और वादी में झूला झुलाने के लिए जियांट स्विंग भी। और, रोमांचक ये दोनों भी कम नहीं।
बंजी की बमुश्किल दो मिनट की उठापटक के बाद नीचे उतरना वैसा ही लगता है जैसे कि फीजिक्स की भाषा में कहें तो किसी वस्तु को सेंट्रीफ्यूग में डालने के बाद जब चीज थमती है या घरेलू भाषा में कहें तो मिक्सी में जैसे चटनी चलाकर जब उसे रोका जाता है। जाहिर है चटनी मैं ही था। नीचे जंपिंग हाइट्स की रूपा ने सीने पर तमगे की तर्ज पर एक बैच टांगा, जिस पर लिखा था- आई हैव गॉट गट्स, यानि मुझमें है दम। नदी की धार से पहाडी चढते हुए ऊपर मुख्य परिसर तक एक किलोमीटर का सफर पेडों के बीच से बंजी के प्लेटफार्म को ताकने और यह अहसास गले के नीचे उतारने में बीत जाता है कि मैं वाकई वहां से कूदा था।
फ्लैशबैक से लौटकर मैंने नीचे वाला फ्लाइंग फोक्स का सर्टीफिकेट पढना शुरू किया। लिखा था- मैंने बिजली की तेजी से उडने की कोशिश करके अंकल आंइस्टीन व अंकल न्यूटन को गौरवान्वित किया और अपने भीतर सुपरमैन की खोज करके एक किलोमीटर तक 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उडान भरी.. आइए परिंदा बनने के लिए।


क्या बला है बंजी जंपिंग
सीधे शब्दों में कहें तो पांवों से रबर की रस्सी बांधकर कूदने को कहा जाता है- बंजी जंपिंग। रस्सी में लोच होता है जिसके चलते कूदने के बाद आप कुछ देर तक हवा में उछलते रहते हैं। फिर जैसी जगह हो, आपको या तो रस्सी में ढील देकर नीचे उतार लिया जाता है और अगर यह मुमकिन न हो ऊपर खींच लिया जाता है। सतह से कूदने की जगह की ऊंचाई जितनी बढती जाएगी, रोमांच भी बढता जाएगा। पीठ, हड्डी या रक्तचाप की तकलीफ वाले लोगों के लिए यह दुष्कर है। मकाऊ टॉवर से दुनिया की सबसे ऊंची बंजी जंपिंग कराई जाती है जो 233 मीटर की छलांग है। इसके अलावा स्वीडन के वर्जास्का बांध से 220 मीटर, दक्षिण अफ्रीका में ब्लोक्रैंस ब्रिज से 208 मीटर और ऑस्ट्रिया में यूरोपाब्रक ब्रिज से 192 मीटर की जंप होती है। ये सब जगहें वो हैं जहां से कमर्शियल जंप होती हों। वैसे सबसे ऊंची बंजी जंप अमेरिका के कोलोराडो में रॉयल गॉर्ज ब्रिज से है (321 मीटर), लेकिन यहां से केवल खास मौकों पर दुर्लभ जंप की ही इजाजत है।


भारत का पहला एडवेंचर जोन

जंपिंग हाइट्स ऋषिकेश से लगभग 15 किलोमीटर दूर मोहनचट्टी गांव के निकट है। आधा रास्ता वही है जो नीलकंठ जाता है। आप चाहें तो अपने वाहन से जा सकते हैं, वरना लक्ष्मण झूले के दूसरी ओर जंपिंग हाइट्स की लग्जरी बसें आपको ले जाने के लिए सवेरे 8.30 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक हर आधे घंटे में तैयार रहती हैं। वहां रुकने की व्यवस्था नहीं है, इसलिए रुकने का इंतजाम ऋषिकेश में ही करें। जंपिंग हाइट्स में बंजी के अलावा दो और रोमांच हैं- फ्लाइंग फोक्स और जियांट स्विंग। ये दोनों भी भारत के लिए अनूठे हैं। फ्लाइंग फोक्स तो एशिया की सबसे लंबी है। सभी के लिए कम से कम 12 साल की उम्र होनी चाहिए। सेहत को लेकर भी मानक सख्त हैं। यह भी ध्यान रखें कि बंजी के बाद नीचे से ऊपर आने के लिए और फ्लाइंग फोक्स प्लेटफार्म तक जाने-आने के लिए थोडी पहाडी चढनी-उतरनी पडती है। जंपिंग हाइट्स परिसर में शानदार कैफेटेरिया और बाकी काबिलेतारीफ सुविधाएं मौजूद हैं। साथ ही जंपिंग हाइट्स की यादें लाने के लिए एक सोवेनियर शॉप भी है। दरें ज्यादा लग सकती हैं, लेकिन फिर रोमांच की थोडी कीमत तो चुकानी ही पडती है। आखिर जंपिंग हाइट्स को शुरू हुए दो ही महीने हुए हैं लेकिन कई रोमांचप्रेमी केवल इसके बारे में जानकर ऋषिकेश में डेरा डालने लगे हैं। रिवर राफ्टिंग जोड लें तो ऋषिकेश इस समय एडवेंचर पर्यटन के गढ के रूप में उभर रहा है।

Thursday, December 2, 2010

केरल की आबोहावा में होकर तरोताजा

ललाट पर गिरकर कपाट के साथ बहते गर्म तेल से मानो भीतर की सारी थकान, जडता पिघल-पिघल कर नीचे रिस रही थी। मेरे लिए यह पहला अनुभव था। इतना घूमने के बाद भी स्पा या आयुर्वेदिक मसाज के प्रति कोई उत्साह मेरे भीतर नहीं जागा था, पहली बार केरल जाकर भी नहीं। इसलिए केरल की दूसरी यात्रा में कैराली में मिला यह अहसास काफी अनूठा था क्योंकि शिरोधारा के बारे में काफी कुछ सुना था।
माथे पर बहते तेल को एक जोडी सधे हाथ सिर पर मल रहे थे। दूसरे जोडी हाथ बाकी बदन का जिम्मा संभाले हुए थे। यूं तो अभ्यांगम समूचे बदन पर मालिश की अलग चिकित्सा अपने आप में है, लेकिन बाकी तमाम चिकित्साओं में भी सीमित ही सही, कुछ मालिश तो पूरे बदन की हो ही जाती है। फिल्मों, कहानी-किस्सों में राजाओं, नवाबों, जागीरदारों की मालिश करते पहलवानों के बारे में देखा-सुना था, मेरे लिए यह साक्षात वैसा ही अनुभव था। फर्क बस इतना था कि दोनों बगल में पहलवान नहीं थे बल्कि केरल की पंचकरमा और आयुर्वेद चिकित्सा में महारत हासिल दो मालिशिये थे। हर हाथ सधा हुआ था। निपुणता इतनी कि बदन पर ऊपर-नीचे जाते हाथों में सेकेंड का भी फर्क नहीं। ट्रीटमेंट कक्ष में कोई घडी नहीं थी लेकिन पूरी प्रक्रिया के तय समय में कोई हेरफेर नहीं। थेरेपिस्ट की कुशलता और उसका प्रशिक्षण कैराली की पहचान है। लगभग पचास मिनट तक गहन मालिश के बाद शरीर के पोर-पोर से मानो तेल भीतर रिसता है (बताते हैं कि शिरोधारा में लगभग दो लीटर तेल माथे पर गिरता है, तेल में नहाना तो इसके लिए बडी सामान्य सी संज्ञा होगी)। जिन्हें इसका अनुभव नहीं है, उनके लिए पहला मौका बडा मिला-जुला होगा, कभी बदन पर गरम तेल रखे जाते ही बेचैनी सी होगी तो, कभी लगेगा मानो बदन टूट रहा हो और कभी निचुडती थकान आपको मदहोश सा कर देगी। लेकिन कुल मिलाकर ऐसा पुरसुकून अहसास जो आपको पहली बार के बाद दूसरी बार के लिए बुलाता रहेगा।
मालिश, जिसे रिजॉर्ट अपनी भाषा में ट्रीटमेंट या थेरेपी कहते हैं (आखिर मालिश बडा देहाती-सा लगता है) के बाद चिकना-चिपुडा बदन लेकर स्टीम रूम में ले जाया जाता है। सिर से नीचे के हिस्से को एक बक्से में बंद कर दिया जाता है और उसमें भाप प्रवाहित की जाती है। मालिश से बाद शरीर से निकले तमाम विषाणु भाप के चलते बाहर आ जाते हैं और पांच मिनट के भाप स्नान के बाद गरम पानी से स्नान आपके शरीर को तरोताजा कर देता है। वह ताजगी आपको आपको फिर वहां लौटने के लिए प्रेरित करती है, जैसे कि मुझे, लेकिन मैंने इस बार एलाकिझी थेरेपी चुनी। इसमें कपडे की थैलियों में औषधीय पत्तियां व पाउडर बंधा होता है और उन थैलियों को गर्म तेल में भिगोकर उससे पूरे बदन की मालिश की जाती है।
थेरेपी केरल व कैराली में कई किस्म की हैं। आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा के हाल में बढे प्रभाव के कारण बडी संख्या में लोग अलग-अलग मर्ज के इलाज के लिए यहां आने लगे हैं। लेकिन कैराली समेत यहां के तमाम रिजॉर्ट रोगों के इलाज के साथ-साथ आपके रोजमर्रा के जीवन के तनाव को कम करने और आपको नई ऊर्जा देने के लिए भी पैकेज डिजाइन करते हों। और तो और केरल के आयुर्वेद रिजॉर्ट हनीमून तक के लिए पैकेज देने लगे हैं। लेकिन बात किसी चिकित्सा पद्धति की हो तो अक्सर बात उसकी प्रमाणिकता की भी उठती है। उनकी काबिलियत उसी आधार पर तय होती है। आयुर्वेद को भुनाने को लेकर हाल में जिस तरह की होड शुरू हुई है, उसमें यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि आप जहां जा रहे हैं, वहां आपको आयुर्वेद के नाम पर ठगा और लूटा तो नहीं जा रहा। क्योंकि अव्वल तो वैसे ही ये पैकेज महंगे होते हैं, दूसरी ओर सामान्य अपेक्षा यह होती है कि आप कुछ दिन रुककर पूरा ट्रीटमेंट लें, तो खर्च उसी अनुपात में बढ जाता है। केरल के पल्लकड जिले में स्थित कैराली आयुर्वेद रिजॉर्ट (कोयंबटूर से 60 किमी) को नेशनल जियोग्राफिक ट्रैवलर ने दुनिया के पचास शीर्ष वेलनेस स्थलों में माना है। किसी आयुर्वेद रिजॉर्ट की अहमियत उसके ट्रीटमेंट के साथ-साथ वहां के वातावरण, माहौल, आबो-हवा, खानपान और चिकित्सकों से भी तय होती है। कैराली के पास न केवल अपना ऑर्गनिक फार्म है जहां रिजॉर्ट में इस्तेमाल आने वाली सारी सब्जियां उगाई जाती हैं, बल्कि एक एकड में फैला हर्बल गार्डन भी है, जहां केरल में मिलने वाले ज्यादातर औषधीय पौधों को संरक्षित करने की कोशिश की गई है।
15 एकड में फैले रिजॉर्ट में हजार से ज्यादा नारियल के वृक्ष हैं और नौ सौ से ज्यादा आम के। इतनी हरियाली और इतनी छांव कि तपते सूरज की गरमी और बरसते आसमान का पानी नीचे आप तक पहुंचने में कई पल ज्यादा ले लेता है।